शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

ek hi makan

योगेन्द्र सिंह छोंकर
रोम रोम में
रमने वाला
राम रमा है
मंदिर में
जर्रे जर्रे से
आज जुदा हो
खुदा खो गया
मस्जिद में
सुनने को 
फरियादें
जनता की
समय नहीं
दोनों के पास
खा खा के धक्के
दरबारों में
जनता लौट रही
उदास
लगाते फिरते
चक्कर वकीलों के
ढोते फिरते
पुलंदे अपीलों के
खड़े रहकर दिन भर
लौटते हैं लेकर
अगली तारिख
दरअसल 
एक ही मकान पर
दोनों एक दावे है
और लाखों दूसरे
मामलों की तरह
यह भी
माननीय न्यायालय में
लंबित है

 

मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

kranti

क्रांति के लिए खुनी संघर्ष अनिवार्य नहीं हें और न ही इसमें व्यक्तिगत प्रतिहिंसा को स्थान हें यह बम और पिस्तोल की संस्कृति नहीं हें क्रांति से हमारा आशय हें की वर्तमान व्यस्था जो खुले तौर पर अन्याय पर टिकी हें बदलनी चाहिए
शहीद भगत सिंह